تؤرجحُني | |
في فضاءٍ | |
كملاكٍ | |
لَهُ المجرّاتِ | |
إخوةٌ | |
و على الأرضِ | |
.أصدقاء | |
أغنيةُ آخرِ المساءِ و أوّلِ الليلِ | |
تهزّ | |
في الروحِ | |
أغصانًا | |
تطيّرُ الموتَ | |
.تطربُ الصمت | |
ضَحِكُ الأصحابِ | |
يقودني لبكاءٍ منسيّ | |
لأدراجٍ مغلقةٍ على أطفالٍ | |
يشعلونَ دموعَهُمْ | |
.ليستأنسوا | |
الدخانُ | |
وطنٌ | |
في الخلاءِ | |
.يتلاشى | |
الجرحُ | |
قمرٌ برتقاليٌّ | |
تشعلُهُ الجمرةُ | |
.ليتجلّى | |
الماءُ يضحكُ | |
.وحيدًا في القاعِ | |
الأصحابُ | |
يضحكونَ | |
عاليًا | |
.يلامسونَ الفرح | |
الفوانيسُ | |
و النباتاتُ | |
متدليةٌ من السقفِ | |
.ظلاًّ لجنّةٍ بعيدةٍ | |
أيقوناتُ الغربةِ | |
متدليةٌ من جبيني | |
ضوءاً | |
لعتمةٍ | |
.صرفتُ في سوادِها طفولتي | |
بكاءُ النهرِ خَفَتَ | |
.يبدو أنّ الأسماكَ نامَتْ | |
الريحُ | |
.ما زالت تهدهدُنا | |
.هل نغفو؟ |